पिछले कुछ समय से खैरागढ़ के शिशु कुमार सिंह छत्तीसगढ़ के रंगमंच में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उन्होंने थिएटर से B.A. थिएटर, M.A. थियेटर M.PHIL थिएटर ,परफॉर्मिंग आर्ट में नेट की पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण की और न्यू दिल्ली ministry of culture fellowship award भी प्राप्त हुआ हैं । लगातार रंगमंच में सक्रिय रहकर नाटक निर्देशन अभिनय व प्रदेश व प्रदेश के बाहर नाट्य शिविर में प्रशिक्षक के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं । छत्तीसगढ़ के रंगमंच पर अपना पी.एच. डी. शोध कार्य पूर्ण करने वाले हैं । आपके शोध कार्य में छत्तीसगढ़ के रंगमंच का इतिहास और वर्तमान स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देखने को मिलेगी । शिशु कुमार सिंह को मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर की तरफ से production grand दिया गया था ।
स्मार्ट सिनेमा से चर्चा के दौरान बताया कि इनके पास बस्तर के भतरा लोक नाट्य पे भी पूर्ण दस्तावेज है जिससे आप बस्तर के लोकनाट्य के बारे में विस्तृत जानकारी जान सकेंगे । छत्तीसगढ़ के रंगमंच को विस्तार देने के लिए समय-समय पर अपने आलेख से और मंच प्रदर्शन के माध्यम से छत्तीसगढ़ के रंगमंच को आगे बढ़ाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं ।
इनका कहना है छत्तीसगढ़ के रंगमंच में जो स्थिरता आई हुई है उसमें फिर से गतिशीलता लाने का प्रयास कर रहे हैं । उनका मानना है रंगमंच करना कोई आसान काम नहीं है आज फिल्म के दौर में रंगमंच करना असंभव सा हो गया है क्योंकि दर्शक वर्ग फिल्म देखना ही पसंद करते हैं लेकिन रंगमंच में जाकर नाटक देखने में उस तरह की रूचि नहीं दिखाते एक समस्या और है दर्शक फिल्म देखने के लिए पैसा देकर जाते हैं वही नाटक देखने के लिए उनके पास पैसे नहीं है इसीलिए रंगमंच करना बहुत ज्यादा खर्चीला हो गया है आप अपने पैसे और समय लगाकर एक नाटक तैयार करते हैं दर्शक से आप उम्मीद करते हैं कि वह आए नाटक देखें बकायदा टिकट लेकर, यह वर्तमान समय में कल्पना मात्र रह गया है । कुछ लोग रंगमंच का चुनाव इसलिए करने लगे हैं कि उन्हें आगे जाकर फिल्मों में काम मिल सके वह इसलिए रंगमंच नहीं कर रहा है कि रंगमंच को आगे बढ़ा सके बल्कि वह फिल्म में जाना चाहता है ऐसी स्थिति में रंगमंच आज कहीं रुक सा गया है । रंगमंच मात्र आज म्यूजियम के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता है । क्योंकि सम्पूर्ण रंगमंच गवर्नमेंट आयोजन में जाके सिमट सा गया हैं । अधिकतर नाट्य फेस्टिवल जो पैसे और सक्रीय रंगकर्मी के अभाव में बंद होते जा रहे हैं और जो नाट्य फेस्टिवल बचे भी हैं वो गवर्नमेंट अनुदान पर निर्भर मात्र हैं ।
वर्तमान स्थिति में छत्तीसगढ़ के रंगमंच की दिशा और भी कठिनाई भरी दिखाई देती है क्योंकि यहां जो पुरानी नाटक संस्थान थी वह पूरी तरीके से बंद होने के कगार पर है कुछ एकआद संस्था जो बची हुई है जो साल में एक दो बार अपने नाटक की प्रस्तुतियां करती रहती है लेकिन ऐसा कोई भी नाटक या नाट्य संस्था नहीं है जो लगातार सक्रिय होकर साल भर रंगमंच करता हो एक समय ऐसा भी था । जब रंगमंच की विभिन्न संस्थाएं थी और दर्शक टिकट लेकर नाटक देखना आया करते थे , नाटक कब होगा इसके बारे में उत्सुकता बनाए रखते थे । 80 से 90 दशक में रायपुर भिलाई दुर्ग में 40 से अधिक संस्थाए सक्रीय थी । वर्तमान समय में दो चार में आ के सिमट सी गई हैं ।
छत्तीसगढ़ के रंगमंच की परंपरा की अगर बात की जाए तो यह प्राचीन काल से चली आ रही है सीता बेंगरा और जोगीमारा की गुफाओं में आज भी रंगमंच के प्रमाण देखने को मिलते हैं जिसे देश के वरिष्ठ नाट्य निर्देशकों ने भी प्रमाणित किया है इसके अलावा बस्तर की जनजातियों में भी आदिम परंपरा में नाट उत्पत्ति का प्रमाण देखने को मिलता है मुख्य रूप से माओ पाठा में रंगमंच के उद्भव और विकास को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। माओ पाटा मुरिया जनजाति द्वारा की जाने वाली एक नृत्य नाटिका है जिसमें आखेट परंपरा से संबंधित विषय पर नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की जाती है ।
छत्तीसगढ़ का लोक रंगमंच अपने आप में देश ही नहीं देश के बाहर भी एक पसंद की जाने वाली संस्कृतियों में से एक है जिसके बारे में लोग जानना चाहते हैं । छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से तीन प्रकार के लोकनाट्य देखने को मिलते हैं । लोकनाट्य नाचा लोकनाट्य , रहस और लोकनाट्य भतरा जिनके कारण छत्तीसगढ़ के रंगमंच को विशेषता के साथ देखा जाता है ।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ की अन्य लोक संस्कृति में भी नाटक के तत्व देखने को मिल सकते हैं जैसे कि डिंडवा नाच और लोक गाथा की पांडवानी की प्रस्तुति में भी नाटक उभर कर आते हैं ।
शिशु कुमार सिंह छत्तीसगढ़ के रंगमंच में उनकी लोक संस्कृति लोक परंपरा और वर्तमान समय में आधुनिकता के साथ रंगमंच को फिर से स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं।